क्या ये भी

क्या ये भी दीवानगी का आलम होता है
जो कभी दूर नहीं उससे बिछड़ने का गम होता है

कभी लगता है तुम मुझसे गैर ही नहीं
और कभी तुमसे बिछड़ने का भरम होता है
क्या ये भी ........

कभी बन जाते हो मुस्कुराहट लबों की मेरे
अभी ये दिल तेरी याद में नम होता है
क्या ये भी........

मुझमें ही रहते हो फिर भी पर्दा है मुझसे ही
इश्क़ में ये भी अनोखा ही सितम होता है
क्या ये भी.......

जाने कितने ही अक्स बदलते हो पल पल
कभी खुदा मेरा तू कभी सनम होता है
क्या ये भी........

दिल ये जज्बात भी लिखता है जाने कैसे
कभी तू दिल में रहता है कभी कलम होता है
क्या ये भी.........

तेरे आगोश में होकर भी तन्हा पाते हैं खुद को
हस रहा फिर भी इश्क़ का हर जख़्म होता है
क्या ये भी.......

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