कौन लिखता है
कौन लिखता है साहिब कौन लिखवाता है
ये तेरा इश्क़ ही है जो सब कह जाता है
जो उतरता है कलम से वो कहाँ मैंने लिखा
तू ही लिखता है सब तू ही बन जाता है
कौन लिखता है.....
मैं तो उलझी रही दुनिया के झूठे रिश्तों में
पर तेरा मेरा तो पहले से कोई नाता है
कौन लिखता है......
जिस और देखती हूँ तू ही तू नज़र में कभी
कभी ढूंढती ही रहती तू किधर जाता है
कौन लिखता है......
सच तो ये है मैं ही खो जाती ताने बाने में
एक बार तू जो आए फिर कहाँ जाता है
कौन लिखता है.....
हाँ खिलौना हो गयी तेरे हाथों का
है मज़ा तुझको तू खेलता ही जाता है
कौन लिखता है.....
नहीं औकात मेरी की तेरा कभी नाम भी लूँ
तू जब चाहे तेरा नाम तब बुलवाता है
कौन लिखता है......
हाँ तेरी याद बन गयी है तुझसी मीठी ही
जब तू चाहता है मुझे याद बन मिल जाता है
कौन लिखता है......
और कभी जिक्र तेरा नहीं कर पाऊँ तो
ऐसे लगता तू मुझे भूलता ही जाता है
कौन लिखता है.....
मेरे हो मेरे ही रहना कभी जाना नहीं
तेरी नज़र से जो घायल वो कहाँ जाता है
कौन लिखता है......
मेरे लफ़्ज़ों में तुम ही तुम बस जाओ कान्हा
हर लफ्ज़ इश्क़ की ग़ज़ल फिर बन जाता है
कौन लिखता है.......
अब नहीं जाना कहीँ मुझको छोड़ सनम मेरे
तेरे जाने से मेरा दम ही निकल जाता है
कौन लिखता है.....,..
जो कभी एहसास भी हो तुम दूर हो मुझसे
फिर वो एहसास मुझे पल पल जलाता है
कौन लिखता है.....
और कहाँ ढूँढने जाऊँ गली कूचे में
यार तू मेरा है मुझमें ही मिल जाता है
कौन लिखता है.......
तेरे नग्में है अब सब हैं तराने तेरे
दिल तेरे इश्क़ में पागल ही हुआ जाता है
कौन लिखता है.......
कभी तुझमें और मुझमें फर्क नहीं रहता
खुद को खो देती हूँ तू मिल जाता है
कौन लिखता है.......
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