छूकर तुझको

जहां तुझको छूकर हवाएँ आएं
मुझको उस गली का बाशिंदा करदे

मर नहीं जाऊँ कभी इंतज़ार में तेरे
दे दीदार मुझे जिन्दा कर दे

अब नहीं उड़ सकती दर्द बहुत मुझको
तू चाहे तो हल्का सा परिंदा कर दे

कोई चुन लूँ दिन तुझसे मिलने का
तू भी तारीख़ कोई चुनिंदा कर दे

क्यों मैं दर्द की बस्ती में रहती हूँ
मेरे महबूब अपनी बस्ती का बाशिंदा कर दे

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