कान्हा तुम आ गए
कान्हा !
तुम आ गए
देखो ये तुम ही हो
मुझे ठगने आ जाते हो
तुमको पहचान लेती हूँ मैं
हाँ
ये तुम ही हो
पहले वायु बन स्पर्श किये
फिर वर्षा की बूँदें
कहाँ गया वो ताप
जो कब से भीतर दाह रहा था
और तुम्हारा स्पर्श
कैसे बदल गया सब
मेरा सब श्रृंगार ध्वस्त किए
कबसे से अश्रुओं की माला पहनी थी
सब तोड़ गए तुम
सब क्यों बदल गया
हाँ
तुम ही तो हो
जो नटखट शैतानियाँ करते हो
यूँ लगता मुझे विरहित भी नहीं रहने देते
लौट आते हो
इतना प्रेम करते हो
फिर छिपते क्यों हो
और जब आते हो
तो लगता है ठग ही लोगे
देखो मैं तुम्हें पहचान लेती हूँ
तुम्हारा स्पर्श
वो कम्पन स्पंदन
फिर रह जाती है
एक कम्पकपाती सी देह
मूक बधिर सी
जिसमें तुम ही घुल गए
और तुम
मुझे ठगना चाहते हो
कि तुम आओ
और मुझे पता भी नहीं लगे
ठीक है
जैसे तुम चाहो
क्योंकि तुम्हारा ही प्रेम
जी रही हूँ
क्या ये श्वास मुझे जीवित रखे हुए
नहीं नहीं
केवल और केवल
तुम्हारा प्रेम
हाँ
तुम्हारा प्रेम ही मेरा जीवन है
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