मयूर संग श्यामा

मयूर संग बतियाए रही बैठ श्यामा प्यारी
बहुत देर भई अबहुँ आये ना गिरधारी

छूवत रही मयूर पंख श्याम की समृति में
और कोऊ ना बसे अबहुँ मन चित वृति में

पिय पिय रटत रटत मयूर की निहारे है
पिया खड़े मुस्काये रहे ज्यूँ ही श्यामा पुकारे है

देखो मोहन श्यामा कैसी बाँवरी सी भई है
कान्हा कान्हा रटत रटत कान्हा होय गई है

अबहुँ पुकारत है कान्हा नहीं आयो है
अबहुँ श्याम पिया अंक में बिठायो है

बाँवरी सी होय रही सुधि बुधि खोई है
देख कान्हा तेरी श्यामा बाँवरी सी होई है

रैन दिवस सुधि भुली यमुना पे जावे है
कोऊ सखी मिले प्यारी श्याम ही बतावे है

अद्भुत है प्रीती युगल की अद्भुत ही रूप है
युगल वर राधा माधव का प्रेम ही अनूप है

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