सुन रही हूँ धड़कनें

सुन रही हूँ तेरी धड़कनों को मुझ में
कैसे कह दूँ तू कहीं और रहता है

आज तो मौसम ए आशिकी गजब का है
मेरा महबूब मुझमे ही मिला मुझको

कभी दूरी के एहसास से मरती थी
अब तू ऐसे मिला की मुझमें ही रहे
क्या कहूँ कैसे कहूँ सब सोचती थी
अब क्या कहूँ जब तू ही सब कहे

जो खुद ही आते हैँ इश्क़ करने को
नहीं सुना उनको ये बात अलग ही
जब सुना तो लगा तुम ही तो हो
और कौन
तुम मेरे कान्हा
तुम

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