हरिहौं तेरी महिमा अनन्त महान बाँवरी मुख राखै न जिव्हा कैसे करे बखान भक्ति रूप में करै आस्वादन धर नित्य नव रूप प्रेम कौ ही स्वाद चखे बस यही स्वाद बनै अनूप भोरी गुजरी का प्रेम...
हरिहौं न रीति भजन की जानी भजनहीन होय इत उत डोलूं करूँ सदा मनमानी अवगुण की खान होऊँ नाथा मूढ़ा अधमा अभिमानी बिरथा कीन्हीं स्वासा स्वासा न होय नाम कौ गानी कबहुँ मन लगै हरिभजन म...
हरिहौं होऊँ अवगुण की खान भव रोग लगै रहै भारी कीजौ तुरंत निदान इतनो होय भरोसो नाथा तुम्हीं हौ मेरौ ठौर नाम तुम्हारा रटै जिव्हा न देव ध्याऊँ और तुम नाथ मैं रहूँ अनाथ फिर नाँहि...
अश्कों के पीछे आज हमने कुछ आग है दबाई धीरे धीरे से जल रहे हैं भा रही है सुलगाई इस आग में फनाह हो ही जाए वजूद सारा तिल तिल कर मरना अब शौक हो गया हमारा बारिशें बरसती हैं बाहर तपिश फ...
हरिहौं भजन चटपटी न लागी बाँवरी पतिता भोगी भारी रहै सदा विषय रस पागी जन्म जन्म की निद्रा गाढ़ी अबहुँ न बाँवरी जागी हँसा होतौ तो पीवत सुधा रस रहै विष्ठा पावत कागी
चेतना तू किसकी कहाँ से बिखरी भटकी अकुलाई ढूंढी पाई भुलाई फिर खोजी यही तो हुआ इस चेतना सँग कहाँ से बिखरी जान भी गयी पर भुलाती रही पुनः पुनः व्याकुल अतृप्त क्योंकि तृप्ति और क...
हरिहौं देयो भजन कौ दान बाँवरी हिय न प्रेम उपजै कबहुँ रह्यौ पाषाण समान कबहुँ हाथ सुमिरनी राखै कबहुँ जिव्हा हरिनाम गान बाँवरी रह्वै विषय रस पीबत कबहुँ करै नाम रस पान हरिहौं ...
हरिहौं हम जगति कौ कीच कौन विध प्रेम अंकुर हिय फूटै कौन विध होवै सींच नाम भजन क्षनहुँ रुचै नाँहिं हिय रमावै भोगन बीच बाँवरी पतिता जन्म जन्म की रही नीचन सौं नीच
हरिहौं मैं प्रीति न कीन्हीं साँची बाँवरी पतिता जन्म जन्म की विषय भोग रँग राँची विषय भोग रँग राँची हरिहौं नाम कौ नेम न भावै विषयन भोग होय अति गाढ़े हिय प्रेम नाँहिं हुलसावै क...
*प्रेमी की रुचि और स्वाद क्या है* श्रीयुगल कृपा से जब प्रसाद वत किसी चेतना की अभिन्नता हो जावै , उसे युगल रस प्राप्त हो जावै तब उस प्रेमी की सभी रुचियाँ केवल उसके प्रियाप्रिय...
हरिहौं साँची प्रेम पिपासा न होई बाँवरी पतिता भोगी भारी जन्म जन्म रही सोई जन्म जन्म रही सोई मूढ़े साँचो धन रही बिसराई प्रेम न होय तेरे उर अंतर बिरथा जन्म गमाई कबहुँ नाम भजन त...
*प्रेम हिंडोरा 3* श्रीयुगल को नित नित नये चाव लड़ाना ही तो दासी, मञ्जरी , किंकरियों का सुख है, अपने अनन्त कोटि प्राणों का सुख श्रीयुगल का सुख। आज फिर अपने प्राण श्रीयुगल क...
हरिहौं तेरी महिमा अनन्त महान बाँवरी मुख राखै न जिव्हा कैसे करे बखान भक्ति रूप में करै आस्वादन धर नित्य नव रूप प्रेम कौ ही स्वाद चखे बस यही स्वाद बनै अनूप भोरी गुजरी का प्रेम...
हरिहौं न रीति भजन की जानी भजनहीन होय इत उत डोलूं करूँ सदा मनमानी अवगुण की खान होऊँ नाथा मूढ़ा अधमा अभिमानी बिरथा कीन्हीं स्वासा स्वासा न होय नाम कौ गानी कबहुँ मन लगै हरिभजन म...
हरिहौं भोगी जन होऊँ भारी कबहुँ नाय लजाऊँ प्रेम विहीना जग वीथिन घूमूँ कबहुँ नाय सकुचाऊँ प्रेम सौं हिय न फूले कबहुँ होय पाथर सौं कठोरा जो साँचो चरणन नेह न लाई कोऊ मिलै न ठौरा ...
अश्कों के पीछे आज हमने कुछ आग है दबाई धीरे धीरे से जल रहे हैं भा रही है सुलगाई इस आग में फनाह हो ही जाए वजूद सारा तिल तिल कर मरना अब शौक हो गया हमारा बारिशें बरसती हैं बाहर तपिश फ...
करुणा के सिन्धु मेरे निताई दयाल हिय सम्पति देवै पतितन करै जो निहाल मांगे न और कछु बस हरि हरि बोल सब पतितन के जी पाछै रह्यौ डोल ऐसो कौन दयाल साँचो जो हरि प्रेम लुटावै निताई नि...
रटौ मन आठों याम गौर निताई नाम भजो भाई सुबह शाम गौर निताई नाम गाओ गाओ प्राण भर गौर निताई नाम नाम भजै नाम पावै गौर निताई नाम प्रेम उन्मत्त बनावै गौर निताई नाम कीजौ एकै काम भजो ग...
आप की इनायतें तो कम नहीं हैं नज़र भर निहार लें ऐसे ही हम नहीं हैं आपने तो कभी हमें दिल से न भुलाया पर तेरा ही पता क्यों इस दिल न पाया बेवफ़ा ऐसे कि बिछड़ने का गम नहीं है आप की इनायते...
*प्रेम की गम्भीर स्थिति गम्भीरा* श्रीकृष्ण राधा प्रेम आस्वादन को गौर रूप में लीला करते हैं, तब वह राधा भाव राधा अँग काँति को धारण किये हुए हैं। श्रीराधा प्रेम सिन्ध...
*प्रेमी के मन का उत्साह- प्रियतम की प्रेम रीति* प्रेम ही प्रेम को ढूंढता है, प्रेम ही प्रेम का पोषण करता है, प्रेम का असन बसन सब प्रेम ही हो जाता है। प्रेम ही प्रेम को भरता है, प्र...
हरिहौं होऊँ अवगुण कौ खाना अवगुण देखूँ अवगुण चेतुं हरिहौं आपहुँ करौ निदाना आपहुँ करौ निदाना हरिहौं नाम की डोर बांध लीजौ बाँवरी पतिता जन्म जन्म की भारी चरणन दूर न कीजौ नाम ब...
*पुकार* पुकार !!हाँ नाथ कब पुकार सकूँ तुम्हें। कब मेरी पुकार सच्ची हो। पुकारा तो बहुत मैंने , पर सच कहूँ केवल अपने स्वार्थ वश। अपनी कामनाओं के वशीभूत होकर ही पुकारा। अपने अभाव...
*युगलरूप गौरांग* *गौरांग* अपने भीतर रस का अथाह सिन्धु समाये हुए हैं जिसे वह न हो पीते हुए अघाते हैं न लुटाते हुए अघाते हैं। प्रेम सिन्धु, करुणासिन्धु , इस उज्ज्वल गौरकान्ति...
अपने गम को कुछ इस कदर आज सज़ा लिया मैंने मचले से दिल को देकर तस्सली मना लिया मैंने चुन चुन कर सजाया सभी दर्दों आहों को जिन्दगी का इक गुलदस्ता बना लिया मैंने अपने गम को........ जानते ह...