तुम बिन सकल बसत

हरिहौं तुम बिन सकल बसत भाय
नेह न उपजै पाथर हिय माँहिं भजन नाँहिं सुहाय
पाथर कठोरा मूरत न भयौ शत शत चोट लगाय
न लग्यो कोऊ चौखट ऐसो बिगरो रूप बनाय
हा हा नाथा पतिता बाँवरी भजनहीन राखी सुभाय
झूठो बिलपत झूठो क्रंदत पाथर होय पाथर रह जाय

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