फटै न काहे
प्यारी काहे फटै न मेरौ छाती
बिन सेवा दरस होय जीवन फिरूँ जगति मदमाती
सगरौ स्वासा बिरथा कीन्हीं जो प्यारी न हिय लगाती
काहे देत रही मोय स्वासा जरूं नित्य सम बाती
बाहर भीतर दोऊ अन्धेरे प्यारी काहे न चरण बैठाती
कान दिये सुनो अबहुँ बाताँ बाँवरी पीर सुनाती
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