कृपा कबहुँ होय

हरिहौं कृपा कबहुँ होय
कबहुँ विकल होय बाँवरी दृगन भरि भरि रोय
कबहुँ लगै न कछु मीठो सकल वसत लगै खारी
झूठो बसत सौं नेह करि करि सगरौ जन्म बिगारी
हा हा नाथा देयो चटपटी कबहुँ नेहा साँचो लागै
बाँवरी विष्ठा की पुतरी सदा दूर भजन ते भागै

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