प्रेम हिंडोरा 11

*प्रेम हिंडोरा 11*

    श्रीयुगल पुष्पों से सज्जित हिंडोरे पर विराज रहे हैं,परन्तु जैसे ही सेवामयी किंकरियों ने दोनों को सँग बिठा हिंडोरे को झोटा दिया, श्यामसुंदर का कर स्वामिनी जु से स्पर्श किया, प्रियतम रोमांचित हो गए।आज स्वामिनी जु का स्पर्श पाकर प्रियतम की स्थिति विचित्र हो गई है।स्पर्श से उनके हृदय में रस सिंधु ज्वार की भांति उछल पड़ा है।शब्दहीन सी स्थिति में प्रियतम दृष्टि भर उठाकर देखने का साहस भी न कर पा रहे अपनी प्राण प्रियतमा को। अपनी इस विचित्र सी दशा में हिंडोरे से उठ स्वामिनी जु के चरणों में ही आ बैठे हैं।

     श्रीप्रियतम के नेत्रों से अविरल अश्रु धारा बह रही है, जैसे आज अपनी स्वामिनी के चरणों का अभिषेक अपने अश्रुओं से ही करेंगें। द्रवीभूत चित्त , अश्रुपूरित नयन और कम्पकपाती हुई देह, अपनी स्वामिनी का नाम मुख से भी नहीं ले पा रहे।प्यारी प्याआआआआरी पया............. पूर्ण उच्चारण भी नहीं कर पा रहे।भीतर हृदय से उठते भाव जो अश्रु सँग बह स्वामिनी जु के चरणों का स्पर्श कर रहे, श्रीप्रिया उनकी यह विव्हल दशा देख रही हैं।प्रियतम का एक एक अश्रु जैसे उनके हृदय को ही छू रहा है।स्वामिनी प्रियतम के हृदय भाव अनुभव कर उन्हें अपने प्रेमालिंगन में भरने को व्याकुल हो रही हैं।

    प्यारी !! मैं तो मात्र आपके चरणों का एक तुच्छ किंकर हूँ, हे किशोरी ! तुम मेरे हृदय वृंदावन की स्वामिनी हो। हे मधुरेश्वरी ! मेरा सम्पूर्ण विश्राम तुम हो किशोरी, मैं सर्वथा अयोग्य, किस भाँति तुम मुझे अपने सम्पूर्ण माधुर्य सिंधु में निमंजित करती हो , हे प्राणा !! तुम्हारे इन चरणों से बाहर न तो मेरा जीवन है, न ही कोई धन है, किस भाँति, किस यत्न से प्राणेश्वरी तुम्हें किंचित सुख दे सकूँ।जितनी दैन्यता श्रीप्रियतम के हृदय से प्रकट हो रही है श्रीप्रिया भीतर उतनी ही व्याकुल हुई जा रही हैं।कोमला प्यारी जु की दशा भी तो ऐसी हुई जा रही कि उनके मुख से भी एक शब्द नहीं निकल रहा। मूक वार्ता में दोनों एक दूसरे के प्रेम को अतुलनीय और स्वयं को पूर्णता अयोग्य मान रहे हैं।

             श्रीप्रियतम के नेत्र अविरल अश्रु प्रवाहित करते जा रहे हैं, अपनी प्रियतमा के प्रेम से वशीभूत होकर श्रीप्रियतम इतने दीन होते जा रहे हैं, उनकी समस्त अभिलाषाएं ही अपनी स्वामिनी के चरण कैंकर्य होने में सीमित हो चुकी हैं। मधुरेश्वरी की मधुरता में जैसे एक बाढ़ ही आ गई है तथा अपने प्रियतम को प्रेमालिंगन देते हुए किशोरी उन्हें हिंडोरे पर अपने साथ बिठा लेती हैं।उनको हृदय से लगाकर पुनः अपने माधुर्य सिंधु की मधुरिमा प्रदान कर रही हैं...

जय जय श्रीश्यामाश्याम !!
जय जय श्रीवृंदावनधाम !!

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