निकुञ्ज मन्दिर
*श्रीश्रीमधुरालय श्रीनिकुंज मन्दिर*
श्रीश्रीमधुरालय श्रीयुगल की मधुरिमा का विलास है , इस निकुञ्ज मन्दिर में पूजन , अर्चन , तर्पण सभी प्रेम ही प्रेम है।इस मंदिर के प्रवेश पर बजने वाली मधुर नाद श्रीयुगल के कोमल पाद पद्मों की पायलों की रुनझुन है, जिसके श्रवण मात्र से इस मधुरालय की मधुर संचालिकायें सभी सखियाँ , मंजरियाँ आह्लादित हो जाती हैं।जिनका कार्य इस प्रेम सदन में प्रेम पूजन ही सम्पादित करना है। इस प्रेमालय में प्रेम देव श्रीयुगल हैं जो परस्पर प्रेम पूजन से ही उन्मादित होते हैं। इस प्रेम साधना में परस्पर प्रेम ही श्रृंगार है, प्रेम का ही पूजन है, प्रेम का ही आचमन है, प्रेम का ही प्रसाद है जिसे श्रीयुगल स्वीकार कर अपनी मधुर मधुर प्रेम संचालिकाओं में वितरित करते रहते हैं।
श्रीश्रीमधुरालय में यह प्रेम पूजन नित्य नित्य नवल श्रृंगारों के साथ सम्पन्न होता है। कभी होली में उड़ते गुलाल के रँग,कभी बसन्तोसत्व, कभी श्रावण की मीठी फुहारें तथा उनमे पड़े प्रेम हिंडोरे इस मंदिर में नव नव छटा बिखेरतेे हैं। नित्य नित्य नव दूल्हा नव दुलहिन का श्रृंगार उत्सव इस मंदिर का नित्य क्रम है , जिसके सम्पादन का कार्य भी उनकी ही प्रेम किंकरियों द्वारा संपादित करवाया जाता है। वह अपने प्राणों के प्राण इस नवल दम्पति को नव नव श्रृंगारों से श्रृंगारित कर नव नव लाड़ लड़ाती हैं।
इस मधुरालय श्रीश्रीनिकुंज मन्दिर में श्रीयुगल की कटि किंकणी का मधुरतम नाद ही प्रेम पूजन में वाद्य है, जिसके श्रवण मात्र से किंकरियों के हृदय फूलने लगते हैं। इस प्रेम मन्दिर में प्रेम ही आरोगा जाता है , प्रेम ही पूजनीय है ,प्रेम ही प्रसाद स्वरूपः वितरित है ।प्रेम के ही बसन, प्रेम के ही आभूषण, प्रेम का ही श्रृंगार, प्रेम का ही प्रसार है।प्रेम देव श्रीयुगल की प्रेम ही आराधना है।श्रीयुगल के दिव्य नाम का गान ही इस मंदिर में श्रवणीय है। इस प्रेम मन्दिर में प्रति क्षण श्रीवेणु नाद प्रेम पूजन को माधुर्यता प्रदान करता है। वेणु का एक एक रव प्रेम का एक स्पंदन है जो एक हृदय से दूसरे हृदय में तरंगायित होकर प्रेम की भिन्न भिन्न विधियों को सम्पादित करता रहता है।सभी मञ्जरी दासियों के लिए यही मधुरालय उनके प्राण श्रीयुगल का प्रेमनिवास है, इसी की अपने प्राणों से प्रेम अर्चना ही उनका जीवन।
जय जय श्रीश्रीमधुरालय !!
जय जय श्रीनिकुंजमन्दिर !!
जय जय श्रीयुगलकिशोर !!
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