पीर दयो अपार

हरिहौं देयो पीरा हिय अपार

बाँवरी भोगी जन्म जन्म कौ न बनै भजन कौ सार

भोग विषय माँहिं हिय रमावै भोग रस होय पसार

हरिहौं कस कस चपत धरावो बाँवरी भोगी बनै चमार

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