पोथी पढ़ पण्डित
पोथी पढ़ पण्डित भयौ कबहुँ मुख हरिनाम न गाय
भक्ति विहीना जो ज्ञान रहै न हरिप्रेम उपजाय
बाँवरी पढ़ पढ़ क्या कीजै जो फिरै हरिनाम विहीन
हिय कपट कुटिलता भरी न बनै सुभाव कबहुँ दीन
कौन भाँति हिय प्रेम उमगाय दीन्हीं साँचो धन बिसराई
मूढ़ा अधम पतित बाँवरी रही पढ़ पढ़ सबहुँ गमाई
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