चिंतामणि
*चिंतामणी*
चिंतामणी का अर्थ है कामनाओं को पूरा करने वाला रत्न। जड़ीय वस्तुओं की कामना तो जड़ीय वस्तु से पूर्ण हो जाएगी , परन्तु यह पूर्ति क्षणिक ही होगी , क्योंकि भौतिक कामनाओं का अंत हो ही नहीं सकता। कोई चिंतामणी भौतिक कामनाओं को पूर्ण तो कर सकता है , परन्तु उनकी निवृत्ति सम्भव नहीं। क्योंकि इनका कोई अंत नहीं, जड़ीय कामनाये, लालसाएँ, वांछाएँ अंतहीन हैं। चिंतामणी ऐसा मणी माणिक प्रदान कर सके जिसका अंत न हो, जो चुराया न जा सके, जो नित्य नित्य वर्धित हो। यह सब गुण भौतिक चिंतामणी से अपेक्षित ही नहीं है।
चिंतामणी का वास्तविक स्वरूपः भौतिक न होकर चिन्मय है, जो सभी भौतिक एवं जड़ीय कामनाओं से भी मुक्त कर देता है। ऐसी दिव्य चिंतामणी *श्रीहरिनाम* से भिन्न हो ही नहीं सकती। श्रीहरिनाम ऐसी चिंतामणी है जिसका स्वरूपः दिव्य है। यह मुक्ति भुक्ति की तो छोड़िए भगवत प्रेम प्रदान करने की सामर्थ्य रखता है। श्रीहरिनाम श्रीप्रभु का ही स्वरूपः है, चिंतामणी स्वरूपः। अब यह माँगने वाले की इच्छा पर निर्भर करता है कि उसकी कामनाएँ भौतिक एवं जड़ीय हैं या वह भक्ति रस मार्ग का पथिक हो श्रीहरिनाम रूपी चिंतामणी से भगवत प्रेम , भगवत सेवा, भगवत सुख की ही इच्छा रखता है।
श्रीहरिनाम ही वास्तविक चिंतामणी है। इसका स्वरूप चिन्मय है। दिव्य दिव्य रस प्रदान करने की सामर्थ्य श्रीहरिनाम चिंतामणी की है। इसलिए भौतिक कामनाओं , लालसाओं यहाँ तक स्वर्ग मुक्ति आदि तक कि कामना से भी मुक्ति प्रदान करने वाली वस्तु श्रीहरिनाम चिंतामणी है , यही वास्तविक धन है जो मानव जीवन में अर्जित करने योग्य है। ऐसी चिंतामणी का स्पर्श मात्र ही जीवन को रसमय कर भगवत प्रेम , भगवत सेवा की नव नव वर्धित लालसाएँ प्रदान कर जीवन को समृद्ध कर सकता है। श्रीप्रभु अपनी इस श्रीहरिनाम चिंतामणी को लुटाने को ततपर हैं , परन्तु जड़ीय आवरणों से आच्छादित चित्त में यह लालसा ही उदित नहीं है। श्रीप्रभु हमारे हृदय में ऐसी लालसा उदित करें।
हरिहौं देयो भजन कौ दान
बाँवरी हिय न प्रेम उपजै कबहुँ रह्यौ पाषाण समान
कबहुँ हाथ सुमिरनी राखै कबहुँ जिव्हा हरिनाम गान
बाँवरी रह्वै विषय रस पीबत कबहुँ करै नाम रस पान
हरिहौं भजन की चटपटी दीजौ होय भव रोग निदान
भजनहीन भोगी फिरै बाँवरी विनय सुनिये दीजै कान
श्रीगुरु गौरांगो जयते !!
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