देयो भजन कौ लोभा

हरिहौं देयो भजन कौ लोभा
भजन हीन रही पतित पामरी भजन ही साँची सोभा
मानुस देहि दुर्लभ दीन्हीं देयो भजन चटपटी साँची
बाँवरी मूढ़ा षडरस लोभी रहै सदा जगति रँग राँची
कबहुँ अपनो रँग रँगावो नाथा भिक्षा देयो हरिनाम
कबहुँ बाँवरी नाम भजै नाथा साँचो पावे बिसराम

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून