कपट से हानि
*कपट से प्रेम में भाव हानि*
प्रेम को प्रेम का सँग ही भाता है, क्योंकि प्रेम का स्पर्श पाकर ही प्रेम खिलता और फूलता है। प्रेम की इस भाव दशा को जब कहीं अप्रेम का कोई परमाणु स्पर्श करें जिससे भाव क्षति होती है, ऐसी स्थिति में वैष्णव अपराध बन जाता है। श्रीप्रेम प्रभु अपने शरणागत के सभी अपराध स्वीकार कर लेते हैं। वस्तुतः उन्हें कोई अप्रेमी लगता ही नहीं है वह किसी भी जीव में अपराध भाव देखते ही नहीं फिर शरणागत की बात में अपराध कहाँ , परन्तु वैष्णव अपराध वास्तव में श्रीप्रभु को ही पीड़ा देता है जिससे छुटकारा स्वयं श्रीप्रभु भी नहीं देते। ऐसी स्थिति से बाहर तो श्रीप्रभु का वह निर्मल हृदय प्रेमी ही कर सकता है जिसके प्रति यह अपराध बना है। किसी के प्रति भी कपट भाव न बने क्योंकि इससे स्वयम की भी भजन हानि बनती है।इसलिए श्रीकिशोरी जी से नित्य विनती करनी चाहिए कि हे स्वामिनी !सभी को अपने प्रेम का प्रसाद दीजिये, सबके हृदय में आपके ही प्रेम का उज्ज्वल स्वरूपः फूलता रहे, सभी आपके प्रेम की न्योछावर होकर पुष्पवत आपके चरणों मे ही अर्पित रहें। श्रीयुगल का मंगलमय विधान सबके जीवन मे क्रीड़ामय हो।
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