शयमसुन्दर ही श्यामसुन्दर

*श्यामसुंदर ही श्यामसुंदर*

आलि री !! मोरे नयनन कौन भरयो री, श्यामसुंदर। जहाँ देखूँ वहीं मोय श्यामसुंदर ही दीख रहे। नयन खोलूँ तो श्यामसुंदर। बन्द राखूँ तो भीतर श्यामसुंदर। मोरे हिय कौ एक एक स्पंदन बोले री , एकै नाम, श्यामसुंदर !! अपने आभूषण देखूँ री आलि !तू मोय धरावै श्यामसुंदर की ही बात कहती गयी री, मोय श्यामसुंदर के बिन कछु सुन्यो ही न री।

     लागे एक एक आभूषण में श्यामसुंदर ही समाय रहे री।एक एक अंग को आलिंगित किये हुए, श्रृंगारित किये हुए।मेरौ असन बसन सब श्यामसुंदर होय गयो री सखी !! जे नयनन क्या निहारनो चाहवें री, श्यामसुंदर।जेई श्रवनपुट ते कछु और न सुनाई देवै री।जेई को नाम मोरे स्वास स्वास सँग भीतर जाय रह्यौ री।लागे भीतर श्यामसुंदर को ही भर रह्यौ री।सखी !! मोय कोई रोग होय गयो री।

  जेई कौ नाम , जेई कौ छब न निकले री मोरे हिय ते।सखी री !! बोलते बोलते बोल्यो भी न जावै री। निहारते निहारते निहारन भी न बनै री। नयनन भर भर आवै री। रोऊँ भी न आलि री, जेई की छब मोरे नयनन सौं अश्रु सँग बह न जावै री। मोरे प्राण प्रियतम !!प्राण भरि भरि राखूँ री।नयन भरि भरि राखूँ री। मुख सौं भी न निकसै री। भीतर ही भीतर पुकारती हूँ, भीतर ही भीतर मिलती रहूँ ... 
श्यामसुंदर श्यामसुंदर .....

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