Sancho virh
हरिहौं साँचो विरह कबहुँ लागै
हिय लगै न भजन चटपटी भजन सौं दूरहि भागै
भजन सौं दूरहि भागै बाँवरी जगति लगै अति नीकी
ढोंग बनावै भाँति भाँति कै बात भजन की फीकी
सगरौ जगति कौ ढोंग दिखावै हरिहौं किस विध राख छिपाऊँ
तुम्हीं जानो सकल कुटिलाई हिय की मुख कहत सकुचाऊँ
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