आपके बिन जी रहे हैं

आपके बिन जी रहे हैं सच कितनी बेवफ़ाई है
फ़िजूल सी चलती रही साँसे पर तेरी याद न आई है

सच पूछो तो जीने की वजह भी कहाँ है अब
तेरी याद कभी रहती थी मुद्दत से ही भुलाई है
आपके बिन .....

और अपनी बेवफ़ाई के किस्से कितने हम लिखें
देने को पास भी हमारे बस भरी रुसवाई है
आपके बिन .......

हैरान हूँ सोच कर वो मोहबत अब कहाँ गई
जिसके नशे में हमने कभी दुनिया सारी भुलाई है
आपके बिन .......

हुनर मोहबत का सच मुझको कभी आया ही नहीं
झूठी सच्ची इश्क़ की यूँ बातें बड़ी बनाई है
आपके बिन ......

अब तो मान भी जाओ मुझमें मोहबत नहीं ज़रा सी
मुद्दत से सूखा है सब कहाँ हमने आंख बहाई है
आपके बिन.....

अपने ही वजूद से कुछ यूँ परेशान हूँ मैं
पूछती हूँ साँसों से क्यों बेवजह तू आई है
आपके बिन जी रहे हैं ........

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