प्रेम हिंडोरा 5

*प्रेम हिंडोरा5*

   श्यामसुन्दर अपनी प्राणा श्रीकिशोरी की प्रतीक्षा करते हुए हिंडोरे पर विराजित हो गए हैं। हिंडोरे के एक एक पुष्प से जैसे उनको प्रिया जु का स्पर्श अनुभव हो रहा है। श्रीप्रिया की सुकोमल करावलियों के स्पर्श से जैसे एक एक पुष्प पुलकायमान हो चुका है , जिसके स्पर्श से श्रीरसराज स्पंदित हो रहे हैं। आज सखियों मंजरियों को हिंडोरा सजाते हुए स्वामिनी जु ने स्वयम कुछ पुष्पों को हिंडोरे में सजाया है। हिंडोरे पर बैठकर रसराज रसमय होते जा रहे हैं।

       श्रीप्रिया अभी सखियों सँग पुष्प वाटिका में है जहाँ वह अपने प्रियतम के लिए पुष्पमाला बनाने के लिए पुष्प स्वयं चुन रही है। सभी पुष्प अपनी स्वामिनी को वाटिका में देख परम आनन्दित हुए जा रहे हैं। ऐसे कौन से सौभाग्यशाली पुष्प हैं जिनको श्रीस्वामिनी का स्पर्श प्राप्त होना है, जो प्रियाप्रियतम की सेवा होने वाले हैं। आज तो स्वामिनी जु अपने हाथों से प्रियतम के लिए माला बनाने को व्याकुल हैं।

    प्रियतम हिंडोरे पर बैठे अपनी फेंट में से वेणु निकाल कर वेणु वादन करने लगते हैं। जैसे ही वंशी की ध्वनि श्रीप्रिया के कानों में पड़ती है, श्रीप्रिया एकदम व्याकुल हो जाती हैं और उनके हाथ से पुष्पों की डलिया छूट जाती है। सभी पुष्प उपवन की नरम हरी घास पर ही बिखर जाते हैं।श्रीप्रिया एक दम व्याकुल होकर हिंडोरे की ओर दौड़ पड़ती हैं। प्रियतम की वंशी ध्वनि उनकी प्रेम विवशता बता रही है, श्रीकिशोरी प्रियतम के हृदय भाव अनुभव कर उनकी व्याकुलता से और व्याकुल हो रही हैं। प्रियतम नेत्र मूंद कर हिंडोरे पर विराजमान हैं, अधरों पर वेणु सुशोभित हो रही है, परन्तु नेत्र बहते ही जा रहे हैं। बहते हुए नेत्रों से श्रीप्रियतम का अंग वस्त्र ही भीग चुका है, वेणु में जैसे प्राण भर भर प्रिया को पुकार रहे हैं। श्रीप्रिया दौड़ती हुई उनके समीप पहुँचती हैं और उनसे गाढ़ आलिंगित हो जाती हैं। प्रियतम वेणु एक तरफ रख देते हैं। श्रीप्रिया प्रियतम के नेत्रों को अपनी करावलियों से स्पर्श कर उनके अश्रु पोंछती हैं।

    श्रीप्रियतम का श्रृंगार पूर्ण हो चुका है, प्रियतम का वास्तविक श्रृंगार पुष्प माला नहीं वरन उनकी श्रीप्रिया का आलिंगन है।प्रियाप्रियतम दोनों के नेत्रों की मूक वार्ता आरम्भ हो चुकी है....

जय जय श्रीश्यामाश्याम !!
जय जय श्रीवृंदावन धाम !!

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