विष की बेलरी
हरिहौं हम होय विष की बेलरी उगी ऊँची मचान
जिस छुय सौ पीड़ा मिले भारी होय अति कशान
कीट होय बाँवरी जन्म जन्म सौं लौटत विष्ठा माँहिं
पसु समान लौटत फिरूँ कीच भावै सदा सदाहिं
बाँवरी कूकरी रही भजनहीन रह्यौ तेरौ सुभाय
धिक धिक ऐसो जीवना न बिगड़ी बनत बनाय
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