प्रेम हिंडोरा 8
*प्रेम हिंडोरा 8*
श्रीयुगल प्रियाप्रियतम सरकार पुष्प शैया पर विराजित हैं। दोनो के नेत्र परस्पर उलझे हुए हैं, नेत्रों की ही मूक वार्ता हो रही है।नेत्रों से ही जैसे एक दूसरे में समाते जा रहे हैं, उनकी यह अतृप्ति यह व्याकुलता बढ़ती जा रही है। सखियाँ अलियाँ तो इनके प्रेम उन्माद को निरतंर पुष्ट करती रहती हैं। एक दासी ने गीत के स्वर छेड़ दिये हैं
नवल चंद्रा नव रँग सरसावै
बिहरत दोऊ कुञ्जन माँहिं राग प्रीति कौ गावै
राधा राधा प्रियतम टेरत रहै वेणु मधुर बजावैं
अलियन सखियन सँग नाचत मधुर मधुर मुस्कावैं
दोऊ पग धरत सँग सँग दोऊ नयनन कोर मिलावैं
सखियन अलियन फिरत मदमाती नित बलिहारी जावैं
सभी सखियाँ उसके स्वर में स्वर मिला श्रीयुगल को उनकी ही प्रीति सुना रही हैं, जिससे वह अति प्रसन्न हो रहे हैं।सखियों ने ढोल मृदङ्ग बजाना आरम्भ कर दिया है। एक सखी श्रीयुगल को उठा कर प्रेम हिंडोरे पर विराजित कर देती है। एक कर में प्रिया जु और दूसरे कर में प्रियतम का कर पकड़ उनको हिंडोरे तक ले आती है तथा वहाँ विराजमान करती है। गीत संगीत की मधुर मधुर लहरियाँ रस लालसा का वर्धन करने लगी हैं।
श्रीप्रियतम अपनी वेणु तथा पीताम्बर वहीं पुष्प शैया पर भूल आये हैं जिन्हें ललिता जु ने उठाया हुआ है। आज पीताम्बर धारी ललिता जु मनहर का रूप धार हिंडोरे के समीप आकर वेणु वादन करने लगती है। नव नव राग रागिनी स्वर झँकृत हो रहे हैं इस वेणु नाद से।
काहे मान कीजै किशोरी भामिनी
मम उर राजिनी सुगंधिनी मोरी प्राण स्वामिनी
तजिहौ मान किशोरी नवले नव नव सुधा अगाधा
तव पद पंकज की सेवा भामा नित्य तृषा रहै साधा
निरखत बनै न रूप माधुरी प्राणे प्रियतम उर वासिनी
बिरहों नित्य प्रियतम अंग सुअंगन नवबाला नवभामिनी
हिंडोरे पर झूलते हुए श्रीयुगल इस गीत गायन , नृत्य से उन्मादित हुए जा रहे हैं। उनकी रूप माधुरी नव नव होती जा रही है। सभी सखियाँ अलियाँ उनकी बलिहार ले रही हैं तथा अपने प्राणधन श्रीयुगल को नित्य नव नव प्रेम रस में उन्मादित होने की आशीष दे रही हैं। भामिनी बाला श्रीकिशोरी प्रियतम के अंग सँग आलिंगित हुई जा रही है तथा नव नव तृषाएँ हृदय में लहराने लगी हैं, सखियन अलियन के हृदय की समस्त वांछाये पूर्ण होने को हैं.......
जय जय श्रीश्यामाश्याम !!
जय जय श्रीवृन्दावनधाम !!
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