तेरे शहर की गलियां

तेरे शहर की गलियाँ भूल नहीं पाएँगे
जहाँ ढूँढते रहे तुझे हम आप ही खो जाएँगे

देखेंगे फिर वही नज़ारे हर सुबह और शाम को
जब तेरे शहर में फिर से बुलाये जाएंगे

सच पूछो तो निकलती नहीं याद दिल से
उम्र भर दिल में रखेंगे कभी भी न भुलाएँगे

आज भी आँखें नम हैं याद करते करते ही
बहते हुए अश्कों की लड़ियाँ हम बनाएँगे

चलो आग ही लगा दो भीतर कुछ सुलग रहा
अपनी बर्बादियों का ही जश्न हम मनाएंगे

फिर से तड़प रहे हैं तेरी गली में आने को
अबके वहीं थाम लेना हम लौटकर न जाएंगे

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून