भजन चटपटी

हरिहौं कबहुँ भजन चटपटी लागै
बाँवरी पतिता होय जन्मन की दूर भजन सौं भागै
कबहुँ सन्त रसिकन की चरण धूरि लेय भाल चढ़ावै
कबहुँ भोग विषय सब छूटे कबहुँ नाम रस पावै
बाँवरी भोग विषय न छूटे भोग विषय रस गाढ़ै
कबहुँ प्रीत हिय उमगावै कबहुँ नाम धन बाढ़ै

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून