न निहार पाऊँ री

*न निहार पाऊँ री आलि !!*

सखी ! जेई को निहार री, जेई श्यामवर्ण बादर श्यामसुंदर होवै री। मोरे प्रियतम !! मोरे प्राण !! निहार री। मोपै निहारन ही न बनै री। कबहुँ कबहुँ एक क्षण देख नयनन भर भर आवै री। जेई को स्पंदन मोरे हिय ते भ्यै री। कबहुँ नयनन भर भर आवै री। साँची कहूँ री सखी , मेरौ प्रियतम ही श्याम वर्ण बादल होय होय आवै री।सुन री !!आलि , जेई बादर की गरज सुनी कबहुँ । कर्ण पुट में मधुरता भर भर जावै री। एकै एकै बुँदिया जो छुए री, याको स्पर्श मोय अंग अंग सो होवै री। जेई बादर न होय री, नयन भर निहार री । जेई मेरौ प्रियतम मेरौ प्राण आज बरसन कौ आतुर होय री।

   सखी री !!साँची कहूँ , निहार भी न पाऊँ री, जेई श्याम वर्ण बादर री। जाइ की घन घन सुन री आली। जेई मोरे प्राणन माँहिं बसी जावै री। न निहार पाऊँ री, न निहार पाऊँ। नेक सौं घूँघट ही खींच लेऊँ री। नयनन माँहिं भरी भरी राखूं री। कबहुँ जेई की छब मोरे हिय में बसी री, बाहर ही न होय जावै री नयनन सौं। घूँघट की ओढ़ माँहिं छिप छिप जाऊँ री आली। जेई की मधुर मधुर फुहार मोय भिगोय देय री। जेई में प्राण घुल घुल जावैं री। न निहार पाऊँ री आलि !! न निहार पाऊँ।

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