जगति कौ कीट
हरिहौं हम रहै जगति कौ कीट
जन्म जन्म बिसराई नाथा बाँवरी रही ढीट कौ ढीट
जड़ता भारी जन्म जन्म कौ मुख हरिनाम न आवै
हिय न लगै चटपटी साँची हरिभजन नाँहि सुहावै
बाँवरी बिरथा जन्मन कीन्हीं कबहुँ पाथर हिय सरसावै
छांड जगति कौ लोभ बाँवरी कबहुँ हरिनाम तू गावै
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