Pathr sm kthora
हरिहौं हिय पाथर सम कठौरा
कबहुँ न द्रवै देख अपनी अधमाई रहै जगति कौ दौरा
नाम भजन की रीति बिसराई बाँवरी दिन दिन जगति जावै
कबहुँ न देखे दुर्दशा अपनी बाँवरी नेकहुँ नाँहिं लजावै
काहे देत रह्यौ स्वासा हरिहौं भजनहीन धरती कौ बोझा
नाम भजन न नीको लागै न स्वासा की कीन्हीं सोझा
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