प्रसाद महिमा
*प्रसाद की महिमा -प्रेम का आहार*
प्रसाद एक भौतिक वस्तु न होकर चिन्मय वस्तु है , जिसे श्रीयुगल का अधरामृत प्राप्त है। श्रीयुगल के स्पर्श से, उनकी दृष्टि मात्र से ही प्रसाद श्रीयुगलमय हो गया है, जिसके भीतर प्रेम सुधा भरी हुई है। ऐसे प्रसाद का कण मात्र भी परम प्रेम को प्रदान करने की सामर्थ्य रखता है। जिस पात्र या दोने में यह प्रसाद पवाया गया है उसके भी सौभाग्य का वर्णन शब्दातीत है, जिसे श्रीयुगल और उनके प्यारों का स्पर्श प्राप्त हो गया है।
प्रेम का आहार प्रेम ही है। श्रीप्रिया का माधुर्य, उनका लावण्य ही प्रियतम के प्राणों का पोषण है। श्रीप्रिया का दिव्य सौरभ, उनके अंगों से झरती हुई मधुर सुगन्ध के पान को श्रीप्रियतम भृमर की भाँति आकर्षित रहते हैं। श्रीयुगल का रमण ही उनका भोजन है , इनकी रसमयता नित्य नित्य वर्धित है तथा यही युगल रस की ज्योनार ही नव नव उमंगों का सींचन करती है।
जय जय श्रीश्यामाश्याम !!
जय जय श्रीवृन्दावनधाम !!
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