कबहुँ प्रेम रस पाऊँ
हरिहौं कबहुँ प्रेम रस पाऊँ
कबहुँ नेह होय तुमसौं साँचो टेर टेर अकुलाऊँ
हरिहौं भोगी जगति की बाँवरी भोग विषय अति गाढ़ै
कौन विध हिय प्रेम बीज उपजै कौन विध बेलि बाढ़ै
हा हा नाथा ढोंग छूटे कबहुँ कबहुँ नयनन बरसै नीरा
कबहुँ नाम टेर टेर भीजै बाँवरी कबहुँ हिय होय अधीरा
Comments
Post a Comment