अधूरी सी प्यास

अधूरी सी फिर प्यास रही आँखों मे नमी लगती है
मिलकर भी न हम मिल सके जाने क्यों कमी सी लगती है

क्या सच यूँ ही होता है इश्क़ हमको तो इल्म नहीं
अब जुदा होते हुए क्यों यह सांस थमी सी लगती है

हसरतें दिल की बह बह कर सभी आंखों से बाहर हुई
भीतर कुछ सुलग रहा पर बाहर नमी सी लगती है

न लौटाओ अब मुझे सच लौटना भी मुश्किल है
यहीं तो कुछ मिली जिन्दगी बाक़ी तो जमी सी लगती है

अब तुमसे भी न छिपा जो हाल ए दिल हमारा है
उड़ रहे थे कल तक हवा में जो अब पैरों तले जमीं लगती है

यह जो अश्क़ बहे है आँखों से मेरे हैं या तुम्हारे हैं
मोहबतें भी तेरी ही अब मुझमें रमी हुई लगती हैं

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