बहुत टूटे
बहुत टूटे हैं तेरे इश्क़ में साहिब हम यूँ तो
मगर अफसोस मुझे मेरी मैं अब तलक बाक़ी क्यों है
आज मिटा दो मेरा वजूद कुछ इस कद्र साहिब
मुझे भी मेरे बाक़ी होने की कोई ख़्वाहिश न रहे
अश्कों आहों की कुछ बारिशें कर दो
इश्क़ के सैलाब में डूबना हो मंजिल मेरी
चंद अश्क़ दर्द और आहें अपनी दे दो मुझको
मुद्दत से सूखी इन आँखों मे बरसातें न हुई
टूटने और सुलगने की तम्मनाएँ हैं बाक़ी
अपने ही वजूद से बहुत दर्द बाक़ी हैं मेरे
चंद आहें अश्क़ और दर्दों की ख्वाहिश है मेरी
इश्क़ की दुनिया मे गरीब सा बाशिंदा हूँ मैं
चलो थोड़ी सी अमीरी अब मेरी किस्मत करदो
मुद्दतों से कंगाली ही मेरे हिस्से आई है
चलो खामोश ही करदो अब साहिब मेरे
मेरी कलम भी मुझसी ही बेवफ़ा ठहरी
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