एकहुँ विनय सुन लीजो
एकहुँ विनय सुन लीजो मेरो गोबिंद कृष्ण मुरार
दूर काहे रहियो मोसों मनमोहन गिरधार
एकहुँ बार आन मिल्यो मोसों करूँ विनय बारम्बार
तुम बिन फीको लागो जग ये तुम्हीं मेरो भरतार
बिन महंदी बिन चूड़ी बिरहन कैसो होय सिंगार
पिया मेरो हाय दूर बसत रह्यो हिय माँहि पीर अपार
हे ब्रजनागर अबहुँ सुन लीजो विनय मेरी इक बार
दरस देयो इस बिरहन को होवे हिय को आधार
बिरह ताप ना सह्यो जावे अबहुँ मेरे गिरधार
बाँह पकर लीजो मेरो कन्हाई तुम्हीं जीवन को सार
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