मैं कहूँ हुआ है इश्क़

मैं कहूँ हुआ है इश्क़ मुझे तो ये मुनासिब ना होगा
तेरे इश्क़ को बयान करूँ कैसे मुझसे साहिब ना होगा

उनका इश्क़ समंदर से गहरा जिसने देखा डूब गया
मेरा इश्क़ इक बूँद भी ना था जाने हवाओं में खो गया

नहीं ये इश्क़ तो नहीं जिसे मैंने इश्क़ मान लिया
इश्क़ तेरा ही सच्चा आज मैंने ये जान लिया

मुझसे वफाओं की उम्मीद भी नहीं रखना साहिब
मुझे कहाँ मोहबत के कोई  तरीके आये
जाने कितने आये कितने डूबे कितने लौटे
तेरी राहों में कई मुझ सरीखे आये

इश्क़ होता तो खामोश ही रहती लफ्ज़ ना बहते
यूँ ही दिखावा ही किया मैंने हमेशा कहते कहते

एक बात है जो मेरे जहन से निकलती ही नहीं
उन्हें ही इश्क़ हुआ है मुझसे मुझे कभी हुआ नहीं

नहीं औकात इतनी कि कभी इश्क़ कर सकूँ उनसे
जो भी है ये उन्हीं की मुझ पर इनायत है
मुझसा ख़ुदग़र्ज़  कहाँ कर सके है इश्क़ उनसे
जो भी है बस ये उन्हीं की ही मोहबत है

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