कुञ्जन माँहि शरद ऋतु
कुञ्जन माँहि पावस उपरन्त शरद ऋतु का आगमन
शरद ऋतु प्रिया लाल सेवा कर रही सुढंग सम्पन्न
केलि प्रिय श्री प्रिया लाल के थिरक उठे मन प्राण
देख रही सखी सहचरी शोभा सब नव नवायमान
रसिया नागर रसीली नागरी सखी सहचरी सहित
निर्मल सुकोमल पुलिन पर छम छम नृत्य करती हुई निरत
अद्भुत रास रस लास्य से हो रही सभी पुलकित
निरख निरख लीला माधुरी रस आनन्द से भई आनन्दित
अति अद्भुत छवि युगलवर विचित्र एक चितवत चित
मदन मोहिनी उज्ज्वल रस केलि नित्य नित्य होवें मुदित
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