है शौक दिल से खेलने

है शौक दिल से खेलने का तो दिल चुराया क्यों
यूँ ही गैर रखना था हमेशा तो अपना बनाया क्यों

नहीं औकात मेरी इतनी की तुझसे सवाल पूछूँ
जो नहीं था पूरा होना वो ख्वाब दिखाया क्यों
है शौक दिल से........

नहीं ऐसी मेरी फितरत की मोहबत को निभाऊँ मैं
इतना ही बता दो दिल हम से लगाया क्यों
है शौक दिल से .........

तेरी ही महफ़िल में आकर तुझे सुनाएंगे हम
यहीं से हमको लौटा दो सोचोगे बुलाया क्यों
है शौक दिल से .........

हम भी बन पाएंगे पत्थर कोई आवाज़ ना होगी
यूँ ही गैर हमको रखना था तो एहसास दिलाया क्यों
है शौक़ दिल से .........

क्या करें अब रुकते नहीं आँखों से अश्क़ मेरे
था खामोश सा ये दिल ये तूफ़ान आया क्यों
है शौक दिल से......

छोड़ जाओ तुम भी मुझको इस दिल में बेवफाई है
मुझसे गुनाहगारों के दिल में ये इश्क़ जगाया क्यों
है शौक दिल से .........

तुमने ही की है मोहबत मुझे निभानी कहाँ आई
उधड़ी सी रूह में सुकून का ये पल आया क्यों
है शौक़ दिल से ........

चलो लौटा लो ये कलम जो इश्क़ में दी है मुझे
कभी सुकून ना दिया तुमको जाने दिल जलाया है क्यों
है शौक़ दिल से........

सारी तोहमत तुमको देना मेरी आदत है पुरानी
फिर भी रोता है दिल तेरे आगोश में मुस्कुराया क्यों
है शौक दिल से खेलने का तो दिल चुराया क्यों
यूँ ही गैर रखना था हमेशा तो अपना बनाया क्यों

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