हमने मुद्दत से

हमने मुद्दत से अपने गम की नुमाइश ही की
न किया ख्याल तेरा ना  मोहबत ही की

घूमते रहे बेखबर हो आपकी गलियों में
कभी दरवाज़ा न खटकाया ना दस्तक ही की
हमने मुद्दत से.......

अब क्या कहें क्या हाल ए दिल हमारा है
आप आये नहीं क्यों आने की चाहत ही की
हमने मुद्दत से........

हम तो मुद्दत से यूँ ही उनको पुकारा किये
ना कभी इश्क़ हुआ ना कभी खिदमत ही की
हमने मुद्दत से........

काश वो आएं कभी मेरी इन गलियों में
ना लभी फूल बिछाए हमने ना इबादत ही की
हमने मुद्दत से........

जाने क्यों लौटा देते हैं गुज़रे हुए ज़मानों में
कोई कसर नहीं छोड़ी आपने इनायत ही की
हमने मुद्दत से......

मेरे मौला मुझको इबादत भी सिखा दो
हमने तो अरसों से इन लबों से सिर्फ शिकायत ही की
हमने मुद्दत से अपने गम की नुमाइश ही की
ना किया ख्याल ही तेरा ना मोहबत ही की

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