श्री जू की एक भाव स्थिति

श्री जू की एक भाव स्थिति
~~~~~~~~~~~~~~

हाय प्रियतम चले गए सखी
दे सकी नहीं अभी उन्हें स्नेह
मुझ कुरुपा में नहीं सौंदर्य कोई
नहीं मन में मेरे सखी कोऊ नेह
अबहुँ सखी प्रियतम होय जहाँ
प्रेम सुधा को पान करें प्रियतम
निर्मल प्रेम सरिता में नित्य ही
हो मग्न नित स्नान करें प्रियतम
नित नित प्रेम नवल रस हो
सदा सुखी रहें मेरे प्रियतम
नहीं हृदय रहे कबहुँ तृषित
नित नित नवल रस पियें प्रियतम
हूँ स्वार्थी है मेरो स्वार्थ यही
प्रेम डोर से बांधे थे प्रियतम
हिय मेरो कोऊ प्रेम रस नही
मुझे छोड़ जाते थे प्रियतम
है स्वार्थ ये कोऊ प्रेम नहीं
जो पाने की अभिलाषा करे
प्रेम में तो सर्व समर्पण है
प्रेम मिटने की ही आशा करे
तुम ही तुम रहो मन में अबहुँ
मुझे है सर्वस्व अर्पण होना
प्रियतम मेरे हों सुखी सर्वदा
मुझे प्रियतम का दर्पण होना
मैं रहूँ उनमें वो मुझमेँ नित्य रमे
मेरा उनका कभी बिछोह नहीं
प्रेम दो से एक करता सदा सर्वदा
हम एक ही हैं कोऊ दोय नहीं

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून