कोई और भगवान
कान्हा
ये क्या
तुमको कह दिया
कि अयोग्य हूँ
भूल जाओ
तो तुम भूल जाओगे
नहीं
मैं तुमको भूलने भी नहीं दूंगी
कल सच कह दी न तुमको
कि तुमसे प्रेम नहीं हुआ
अब तुमसे डर थोडा लगता मुझे
कि तुम रूठ जाओगे
मुझे प्रेम नहीं करोगे
देखो चापलूसी तो मुझे आती नहीं
संसार में भी किसी की नहीं की
तुम तो भगवान हो ना
तुमसे झूठ भी नहीं कह सकती
तुमको सब पता होता
तो सच ही कहती हूँ
अब मुझे मत बुलाना
किसी भी मन्दिर में भी नहीं
देखो बुला भी लिए तो
आऊँगी
तुम्हारे सामने आकर
ठहर जाती थी ना
बस तुम्हें देखती रहती थी
कभी कभी आँखें क्या
दिल भी रोने लगता था
ऐसा कुछ नहीं होने वाला मुझसे
आँख ही बन्द रखूँगी
और अगर खुल भी गयी
तो सूखी ही आँखें होंगी
देखो प्रेम ही नहीं
तो अश्रु कैसे आएंगे
और कभी मुख से
जो तुम्हारा गुणगान हुआ
वो अब कैसे होगा
मुझे तो तुमसे लड़ना ही है
मुंह खुला तो जाने
कितने उलाहने निकल पड़ें
तुमको अब सब सच कह दिया
अब तुम्हारी मर्ज़ी
वैसे अपनी मर्ज़ी तो तुम
सदा से ही करते हो
मेरी कहाँ सुनी तुमने
ठीक है अब भी करना तुम
अपनी मर्ज़ी
और मैं करूंगी
अपनी मर्ज़ी
ऐसे ही सुनाऊँगी तुम्हें
जो पहले सुने
सब प्रेम गीत
उनको झूठ समझना
यही सच है
जो अब लिखा
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