श्यामसुन्दर
श्यामसुन्दर !!
श्यामसुन्दर !!
बस यही नाम है राधा के मुख पर दिन रात । सखी को कहती है सखी तुम मुझे यही नाम सुनाती रहो। लगता है जब तक ये नाम सुनूंगी तब तक ही मेरी देह में प्राण रहेंगे। एक क्षण को भी मुझे ये नाम भूले नहीं। सखी मुझे यही नाम सुनाती रहो। मेरे रोम रोम में श्यामसुन्दर का नाम भर दो। सुनाती रहो सखी कहती रहो। श्यामसुन्दर श्यामसुन्दर .......
सखी जितना मैं इस नाम को सुनती जाती हूँ उतनी ही अतृप्त होती जा रही हूँ । मेरे रोम रोम से यही पुकार हो रही श्यामसुन्दर श्यामसुन्दर .......। हाय जितना ये नाम मुझ विरहणी को सुख दे रहा है उतनी ही भीतर की अग्नि और भड़कती जा रही है। हाय !! क्या जीवन सम्भव हो सकेगा कभी श्यामसुन्दर के बिना। तभी दृष्टि बाहर मेघ की और जाती है ।
श्यामसुन्दर
श्यामसुन्दर
तुम आ गए
आ गए तुम
क्या मेरे हृदय की वेदना
तुम सुन पाते हो
क्या तुम्हें भी प्रेम हो गया है
तुम भी नहीं रह पा रहे हो
श्यामसुन्दर
बोलो ना
मेघों से जल बरसने लगता है
श्यामसुन्दर
तुम रो रहे हो
तुम क्यों रो रहे हो
तुम्हें तो नहीं रोना था
नहीं नहीं तुम्हारा रोना
मुझे बहुत विचलित करता है
देखो मुझे ही तुमसे प्रेम नहीं हुआ
यदि मेरे हृदय में प्रेम होता
मुझे ये ज्ञात होता
कि तुमको पीड़ा होगी
तुम रुदन करोगे
नहीं श्यामसुन्दर तुम नहीं रोना
तुम लौट जाओ
जाओ अभी
तुम नहीं रोना
मेरे लिए नहीं रोना
देखो मैं स्वार्थी हूँ
तुम्हें प्रेम नहीं कर पाई
नहीं तो मेरा हृदय भी
तुम्हारी पीड़ा अनुभव करता
श्यामसुन्दर
तुम लौट जाओ
हाय सखी
मुझे अभी तक प्रेम नहीं हुआ
देखो श्यामसुन्दर आये भी
रो कर लौट गए
हाय मैं कभी कोई सुख नहीं दे सकी उन्हें
पुनः पुनः श्यामसुन्दर का नाम नाम ले रो रही है
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