हूँ गुनाहगार
हूँ गुनाहगार मुद्दतों से जफ़ायें ही की मैंने
मुझको कोई वफ़ा निभानी ही नहीं आती
देखो मत करना कभी भी इश्क़ मुझसे
मुझे कोई भी बात छिपानी नहीं आती
सच है ये नहीं आई कभी तेरी गलियों में
ना ही कभी फ़लसफ़ा ए मोहबत समझा
मुझको रहा इश्क़ मुझी से और मेरी मैं से
मैंने कब तुम्हें अपनी ही चाहत समझा
तुम चाहे झूठ ही समझना ये इश्क़ मेरा
रह लो पर्दे में जब तलक चाह तुम्हारी है
मैंने कब दावा किया कि सच्चा है इश्क़ मेरा
मैंने कब कहा इस दिल में बेकरारी है
आज ना छेड़ो कोई दर्दो के अफ़साने को
कलम लिखने लगी है तो बह जाने दो
मुद्दतों से दबे हुए बेताब से अरमान
आज लफ़्ज़ों में उतरे हैँ कह जाने दो
आज फिर दर्द उतर रहा लफ़्ज़ों में
मेरे रोके से नहीं रुकेगा ये साहिब
कैसे कह दूँ थाम लो आकर मुझको
हूँ गुनाहगार कहाँ है ये मुनासिब
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