मदमाता सा यौवन
मदमाता सा खिलखिलाता यौवन नित्य भर्मर रस पीवत है
कबहुँ अधरन सों कबहुँ नैनन सों रस पीवत उन्मादित होवत है
ये दिव्य निर्मल रस प्रेम सुधा नित् नित कुञ्जन माँहि बहत है
युगल प्रेम की नित्य नवीन बेलि नित्य नवल रस से सिंचित है
नित नित् नवल किशोर किशोरी नव दम्पति बन बन आवत है
इस अद्भुत युगल केलि का सुख नित नित कुञ्जन माँहि साजत है
सखियन को हिय का सुख युगल ही नित नित नव रस पावत है
युगल प्रेम सुधा में भीजत ही सखियाँ बलिहारी जावत हैँ
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