तेरे बिना सुकून मैं
तेरे बिना सुकून मैं पाऊँ तो किस तरह
कूचे को तेरे छोड़ कर मैं जाऊँ तो किस तरह
मुद्दत से दिल बेताब है आरज़ू में तेरी
तेरे दीदार की आरज़ू मैं भुलाऊँ किस तरह
तेरे बिना सुकून .......
आकर ज़रा सा देख लो हाल ए दिल मेरा
अपने दिल के जख़्म ग़ैरों को दिखाऊँ किस तरह
तेरे बिना सुकून .........
लब ही नहीं खुलते अब तेरे नाम के सिवा
दिल की लगी ये दिल्लगी सुनाऊँ किस तरह
तेरे बिना सुकून ..........
ये सोचती हूँ अक्सर तुम खुश सदा रहो
पर तेरे दीदार बिन जी पाऊँ किस तरह
तेरे बिना सुकून.........
लम्बी सी हो गयी है गम की अँधेरी रात
सुनहरी सुबह के इंतज़ार में वक़्त बिताऊँ किस तरह
तेरे बिना सुकून मैं पाऊँ तो किस तरह
कूचे तेरे को छोड़ कर जाऊँ तो किस तरह
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