मेरे मौला मुझे
मेरे मौला मुझे इबादत का अदब बख्शो
कभी बन्दगी हो मुझसे कुछ ऐसा सबब बख्शो
हूँ गुनाहगार जाने कितने गुनाह हैं मेरे
ना कभी किया शुकराना इतने मुझपर करम तेरे
जो करे शुक्रिया तेरा कभी ऐसे लब बख्शो
मेरे मौला .........
इस पत्थर दिल में कभी तेरा हो आशियाना
मुझे अपना लो साहिब नहीं रखो यूँ बेगाना
इस दिल को रहे हमेशा कुछ ऐसी तलब बख्शो
मेरे मौला........
आँख ये कभी भी ना रोई तेरी जुदाई में
नहीं लगाया दिल मैंने तेरी खुदाई में
दर्द और बेचैनियां इस रूह को बेसबब बख्शो
मेरे मौला ........
ना कभी इश्क़ हुआ मुझको गुनाहगार हूँ मैं
तेरी मोहबत की कहाँ सच्चा तलबगार हूँ मैं
कभी बनूँ मैं इंसान यही मजहब बख्शो
मेरे मौला........
जाने क्यों सांसे मेरी तेरे बगैर चलती हैं
नहीं तलब दिल में कोई सब हसरतें बदलती हैं
देखे जो आँखें रहमतें तेरी कितनी गज़ब बख्शो
मेरे मौला मुझे इबादत का अदब बख्शो
कभी बन्दगी हो मुझसे कुछ ऐसा सबब बख्शो
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