तुमसे इश्क़

तुमसे इश्क़ !!!

ये कब चाहा मैंने
अभी कहाँ इस दिल में उठी
तेरे इश्क़ की चाहतें

अभी तो दिल खोया है
इक झूठी सी ज़िन्दगी में
जो किसी मायने में ज़िन्दगी नहीं
सच कहूँ तो जिस्म सिर्फ बोझ ढो रहा है साँसों का
पर
कोई फर्क कहाँ हुआ मुझे अभी

मुद्दत से बिछड़ने कोई गम
कोई रंज मलाल ही नहीं
अभी कहाँ ख्याल आया मुझे तेरा

अभी कहाँ है मेरे लहू में
तेरे इश्क़ की तश्नगी
जो इक कतरा भी लहू का
तेरा नाम ले लेता
हाय !!! मुझे जीने की भी ख्वाहिश न होती
अभी तो जिंदा हूँ
और इस दिल ने अभी कहाँ कोई ख्वाहिश की तेरी
मत देखना
कभी मत देखना
इस और तुम

खुद को देख आज खुद से शर्मसार हूँ
मैं कहाँ अभी तेरी उल्फत की तलबगार हूँ

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