मुझे अब तलक इश्क़ न हुआ
काश कभी मुझे तुझसे इश्क़ होता
कभी ये दिल तेरी जुदाई में रोता
देखा है मैंने इश्क़ करने वालों का हाल
महबूब के बिन क्या गुज़रती है उनपर
जुदाई में एक ही सांस आती बस
और नाम लेकर जान ही चली जाती
सच ऐसा होता है इश्क़
जहाँ पल पल मौत के बराबर हो
सच है मुझे कभी न हुआ इश्क़
शायद मुझे ऐसी कोई ख्वाहिश ही न हुई
इतना सुकून कैसे है तुम बिन
मुझे कभी इश्क़ होता
तो तुम बिन कोई साँस आती मुझे
क्यों ज़िन्दगी रहती क्यों ये साँसें
और एक पुकार भी न उठती तेरे लिए
एक कतरा अश्क़ न बहता आँखों से
मैंने तो झूठ ही कह दिया था
मुझे इश्क़ है तुमसे
और तुम अब तलक यक़ीन किये बैठे हो
अब तो सच मान लो
मुझे अब तलक इश्क़ न हुआ तुमसे
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