तितली 14

बिरहनी तितली 14

श्री वृन्दावनेश्वरी श्री श्यामा अत्यंत हर्षित होकर गा रही है। उसकी सखियाँ भी अति प्रसन्न हैं , वह तो सब जानती हैं कि कान्हा मथुरा चले गए हैं परंतु उनकी सखी भावुद्रेक अवस्था में उन्हें अपने संग पा रही है। अपनी श्यामा के सुख हेतु ही सबने अपने मुख पर झूठी सी हंसी ओढ़ ली है। सभी सखियाँ मिल कर श्री राधा के संग वही गीत गा रही हैं श्याम पिया मैं पायो.....

श्री प्रिया सखियों को सदा अपने हृदय की बात व्यक्त कर देती है। आज तो उन्मादिनी सी हुई एक सखी को आलिंगित कर बैठती है और कहती है, श्यामसुंदर ! तुम मुझे अपनी बांसुरी दे गए थे न , अब तुम मुझसे बांसुरी ले लो और बजाओ। सखी भी अपनी प्राण प्रिया के सुख हेतु राधा से बांसुरी ले लेती है। हाँ हाँ प्यारी जु ! जैसी तुम्हारी इच्छा कहकर बांसुरी को अधरों से लगा लेती है परंतु मुख से बांसुरी के छिद्रों में वायु प्रवाहित न कर नैनों से अश्रु प्रवाहित करने लगती है। दूसरी सखी शीघ्रता से उसे सम्भाल लेती है कि कहीं प्यारी जु की दशा न बिगड़ जाये, वह तो अपनी भाव अवस्था में इस सखी को श्यामसुंदर ही माने हुए है। इस बाँवरी को भी अभी रोना था, तितली भी उसके नेत्रों से अश्रु प्रवाहित होते देख रही है। वह सखी जो राधे को श्यामसुंदर प्रतीत हो रही है पुनः बांसुरी अधरों से लगाती है और सुरमयी संगीत की मीठी रस लहरियां प्रवाहित होने लगती है। श्री राधा तो उन्मादिनी हुई गा रही है श्याम पिया मैं पायो ......

   इस समय का प्रवाह ही स्थिर जो जाये , हमारी किशोरी इसी अवस्था में श्यामसुंदर के प्रेम में विभोर नाचती गाती रहे, परन्तु इस लीला क्रम को तो आगे बढ़ना ही है। राधा नाचती हुई अत्यंत उन्मादिनी हो जाती है और मूर्छित हो भूमि पर गिर पड़ती है। सभी के तो जैसे प्राण ही चले गए हैं। हाय ! प्यारी जु की ये दशा , अब तो श्यामसुंदर भी यहां न है इन्हें चेतन करना कितना कठिन है। सभी सखियाँ अश्रु प्रवाहित करती हैं तो एक सखी कहती है क्यों न हम तेरा श्रृंगार ही श्यामसुंदर के समान करदें । राधा यदि मूर्छा से बाहर आई और श्यामसुंदर न दिखे तो कहीं फिर से इसकी स्थिति खराब न हो जाये।

  सभी सखियाँ मिलकर उस सखी का श्रृंगार श्यामसुंदर के रूप में कर देती हैं । वह सखी पुनः बांसुरी अधरों से लगा बजाने लगती है। पुनः उसी गीत की लहरियां मन्द मन्द बहती पवन में प्रवाहित होने लगती हैं, श्याम पिया मैं पायो.....

    धीरे धीरे श्री प्रिया की मूर्छा टूटती है उसे स्मरण हो उठता है कि कान्हा तो मथुरा चले गए हैं, परन्तु जैसे ही कानो में बांसुरी की ध्वनि पड़ती है श्री प्रिया उठकर देखती है कि श्यामसुंदर बांसुरी बजा रहे हैं और कुछ सखियाँ गा रही हैं श्याम पिया ......श्री राधा दौड़कर श्यामसुंदर बनी सखी का आलिंगन करती है। सभी सखियाँ श्री प्रिया के आनन्द से आनन्दित हैं और तितली भी आनन्द से श्री प्रिया को निहारने लगती है।

क्रमशः

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