विधना काहे रखिहो

विधना काहे रखिहो स्वासा
क्षण क्षण भारी होय प्रियतम बिन मिलन की होय न आसा
मै अभागिन कबसों बिछुरी झूठी होय प्रेम पिपासा
जो होतो सांचो नेह मेरो पिय सों एकहुँ न आतो स्वासा
मैं मूढ़ा अबहुँ नाँहिं जानी क्या होवै प्रेम की भासा
कैसो कहूँ आवो मोहना कीजौ पीर मेरी को नासा

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