माटी का पुतरा
माटी के पुतरे काहे नाचत संध्या भोर
माटी सों बनो अन्त होय माटी माटी को ही ठौर
उर अंतर अहंकार सों फूल्यो नाँहिं कोऊ ऐसा और
माटी सों बन्यो माटी में मिलेगो पकर लीजौ हरि छोर
विषयन सँग रह्यो भरमाया जीवन रह्यो विषयन दौर
काहे फूलत फिरे बाँवरी कीजौ हरि सों प्रेम निहोर
Comments
Post a Comment