जो बीजेगो
जो बीजेगो वही उगेगो याहि होय रीत
हरि चरणन सों नेह न कीन्हों नाँहिं उर जागी प्रीत
मानुष जन्म व्यर्थ कर दीन्हों होय रह्यो हरि विमुख
कैसो भव बन्धन सों छुटेगो भोग रह्यो चौरासी के दुःख
अबहुँ भज ले हरिनाम बाँवरी क्षण क्षण व्यर्थ गमाय दियो
धिक् धिक् होवै ऐसो जीवन पर हरि विमुख रह बिताय दियो
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